मुश्किल दौर में उम्मीद की कविता
-- क्षमा सिंह
ऐसे समय में जब कविता के मुश्किल दौर की चर्चा हो रही है, युवा कवि विमलेश का काव्य संग्रह ‘हम बचे रहेंगे’ कविता के बचे रहने की उम्मीद जगाता है। इस कविता संग्रह से गुजरते हुए पता चलता है कि कवि
का ज़मीन से गहरा जुडाव है और कवि की अपने समय पर पैनी निगाह है। वे आज के समय पर व्यंग करते हुए प्रार्थना
कविता में वे कहते हैं -
“शब्दों से अधिक महत्त्व अशब्दों का जहाँ
“शब्दों से अधिक महत्त्व अशब्दों का जहाँ
तिकड़मी दुनिया वह
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए वह
जिसके होने से कद का ऊँचा होना समझा जाता है।“
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए वह
जिसके होने से कद का ऊँचा होना समझा जाता है।“
कवि के सामने अपने समय कि बड़ी चुनौतियाँ हैं। वे शब्दों की चापलूसी
पर व्यंग करते हैं -मैं तुम्हे शब्दों में प्यार नहीं करूँगा - कह कर वे शब्दों के
खोखलेपन की ओर इशारा करते हैं। शब्दों की बाजीगरी ,शब्दों ने भी पहनने शुरू कर दिए हैं तरह-तरह के मुखौटे ,शब्दों की नीलामी आदि उदाहरणों से पता चलता है कि कवि शब्दों की अर्थवत्ता को लेकर कितना गंभीर है।
विमलेश ने कविता को नए शब्द दिए हैं। रचना के स्तर पर ये शब्द कविता
को समृद्ध करते हैं .'शब्दों के स्थापत्य के पार कुछ और शब्द
हैं' और ये शब्द हैं-सुरीली गंध, बिअहुती, नुकारी, अरार आदि, जिनके बहाने वे शब्दों के स्थापत्य को टटोलते हैं। देशज
शब्दों के प्रति कवि का गहरा लगाव है। विमलेश की कविताओं में चैता की तान है, झूमर गाती अधेड़ औरतें हैं, बासन मांजती पत्नी है, दिहाड़ी मजदूर हैं। कवि ने पिता और भूख का जिक्र बार-बार किया है। संभवतया
उसने दोनों को ही बड़ी गहनता से महसूस किया है। साथ ही कहना चाहिए कि विमलेश की कविताओं की एक खास बात ये भी है कि उनकी कविता में स्त्रियाँ( माँ, पत्नी ,प्रेमिका ,बेटी ) कई रूपों में आयी हैं।
एक अच्छे कवि के लिए यह आवश्यक है कि उसने अपनी काव्य परंपरा को भली-
भांति आत्मसात किया हो। इस लिहाज से विमलेश हिन्दी की काव्य परंपरा को आगे बढ़ाते
दिखते हैं। वह नहीं लिख पाया, कविता से लम्बी उदासी , कवि हूँ ,लोहा और आदमी ,जीने का उत्सव आदि कवितायेँ इस संग्रह कि उपलब्धि हैं।
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क्षमा सिंह, बीएचयू |
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सुशान्त धीर वीनित पीडित अद्भुत ,आभार,....।
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