Monday, August 6, 2012

वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह



   प्रौढ़ता का आभास देने वाला संग्रह
                   -केदारनाथ सिंह

युवा कवि विमलेश त्रिपाठी की कविताएं जब-तब पत्रिकाओं में पढ़ता रहा हूं। पर यहां भरी-पूरी किताब की शक्ल में उन्हें जानने और उनके भीतर से उभरती हुई एक सुपरिचित-सी दुनिया से गुजरने का अवसर पहली बर मिला। हम बचे रहेंगे यह  कवि का पहला काव्य-संकलन है। पर यहां प्रत्याशित पहलेपन के साथ बहुत कुछ ऐसा है, जो अप्रत्याशित है और अनुभव से दीप्त भी। इस उखड़ती सांस जैसे समय में यहां अब भी बचा हुआ यकीन है और एक उठा हुआ हाथजिसका सपना मरा नहीं है। अपने आस-पास की छोटी-छोटी छूटी हुई चीजों को अपने साथ लिये-दिये चलने वाली और उनके भीतर के मर्म को निहायत अनाटकीय ढंग से पकड़ने वाली ये कविताएं हमें रोकती-टोकती हैं और एक जानती-पहचानती भाषा में हमसे बोलती-बतियाती हैं। यही इस युवा कवि की वह विशेषता है जो उसके भविष्य के प्रति हमें आश्वस्त करती है।
     
इन कविताओं के एक अन्य चरित्र लक्षण ने भी ध्यान आकृष्ट किया। वह है इनकी गहरी स्थानीयता किसी आंचलिक अर्थ में नहीं बल्कि अच्छी कविता के सहज गुण धर्म के रूप में स्थानीयता। यों तो यह बात पूरे संग्रह में देखी जा सकती है। पर मेरे जैसे पाठक ने उसे सबसे पहले लक्ष्य किया इस कवि के भाषिक व्यवहार में। भोजपुरिया क्षेत्र से आने वाले इस कवि के भाषा-शिल्प में मुझे अनेक ऐसे शब्द मिले जिनसे लम्बे समय बाद मेरी भेंट हुई। पाम्ही और अनगराहित भाई ऐसे ही प्रयोग हैं। भाषा के स्तर पर जिस बात ने मुझे गहरी आश्वस्ति दी वह है कवि का वह विवेक जिसके चलते वह भोजपुरी शब्दों को कविता के पूरे प्रवाह में इस तरह घुलमिल जाने देता है कि वे सहज लगते हैं और सुग्राह्य भी।

      हम बचे रहेंगे एक युवा कवि का प्रथम संग्रह होने के बावजूद एक प्रौढ़ता का आभास देने वाला संग्रह है। मुझे विश्वास है यह किताब अपने अभीष्ठ पाठक तक पहुंचने में सफल होगी और अपने प्रकाशक नयी किताब की व्यंजना को एक नयी अर्थवत्ता प्रदान करेगी।
                                             - केदारनाथ सिंह 

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